बुधवार, 9 मार्च 2011

सिर्फ नाम के लिए महिला दिवस

सिर्फ नाम के लिए महिला दिवस
८ मार्च ११ को हम १०१ वाँ अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे है यह हम सभी ( खाशकर महिलाओ ) के लिए बहुत ख़ुशी की बात है कि ८ मार्च पूरे विश्व में महिलाओ के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता के लिए घोषित है| पर क्या ८ मार्च वास्तव में महिलाओ को उनके वास्तविक अधिकार और स्वतंत्रता स्थापित कराने में सार्थक साबित हो पाया है| सिर्फ एक दिन को महिला दिवस के रूप में मनाना ही, महिलाओ को उनके खिलाफ होने वाले अत्याचारों और शोषण से मुक्ति नहीं दिला देता और नहीं उन्हें समाज में बराबरी के चोखट पर ला खड़ा करता है| क्या आज भी जब हमारे देश की राष्टपति एक महिला है| वर्तमान समय में सत्ता प्रमुख पार्टी कि मुखिया एक महिला ही है| और देश की सबसे अधिक जनसँख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री भी एक दलित महिला होने के बाद भी पुरुष प्रधान समाज महिलाओ पर हावी है| इस सन्दर्भ में मै यहाँ पर मुख्य रूप से दो घटनाओ का जिक्र करना चाहूँगा |

पहली घटना कानपुर जिले के बिल्ल्हौर क्षेत्र की है| जिसमे एक व्यक्ति ने अपनी पोती को सिर्फ इसलिए कुल्हाड़ी से काट डाला कि उसने उसकी बात/इच्छा के अनुसार न मानकर अपनी मर्जी से शादी कराने का फैसला किया था | सिर्फ अपने बाबा की इच्छानुसार न चलने के कारण लड़की को अपनी जान गंवानी पड़ी| ऐसे न जाने कितने मामले रोज आये दिन अखबारों में छपते है| जिनमे महिलाओ को सिर्फ एक महिला होने खामियाजा भुगतना पड़ता है|

इसीसे मिलती एक और घटना के अनुसार बात कुछ दिनों पहले की है| बारावफात के अवसर पर एक व्यक्ति ने बाजार में ही सभी के सामने अपनी पत्त्नी के कपडे फाड़ दिए और उसे जान से मार देने की धमकी दी| सिर्फ इसलिए क्योकि उसकी पत्त्नी उसकीं मर्जी के बिना जलसा व् रोशनी का कार्यक्रम देखने के लिए बाज़ार चली गयी थी|

उप्रोक्त्य दोनों घटनाएँ तो महिला अत्याचार और शोषण कि सिर्फ एक बानगी भर है| ऐसी न जाने कितनी छोटी छोटी घटनाये आये-दिन होती रहती है| जिनमे महिलाओ को पुरुष कि शारीरिक शक्ति का शिकार होना पड़ता है| और एक महिला होने का दंष झेलना पड़ता है| ऐसे सिर्फ महिला दिवस मनाकर महिला अत्याचारों पर मरहम नहीं लगाया जा सकता है| और नहीं उन्हें अपने विचारो/इच्छाओ के अनुकूल स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार मिल सकता है| यहाँ पर जरूरत है तो एक ससकत महिला आन्दोलन की जिसमे महिलाओ को अपने साथ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ खुलकर आवाज उठानी होगी और इसे एक जन आन्दोलन का रूप देना होगा| जिससे पुरुष प्रधान सोच को समाज से जड़ से उखाड़ फेका जा सके| इसके साथ ही हम सबका भी यह कर्त्तव्य बनता है कि महिलाओ को अपने सामान सम्मान देकर बेहतर समाज के निर्माण में अपना अहम् योगदान दे| तब जाकर हम सही मायने में महिला दिवस को महिलाओ के सम्मान में समर्पित कर पाएंगे और महिलाओ को समाज में उनका सही स्थान दिला पायेंगे |

के.एम्.भाई

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