मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

जिंदगी का फलसफा
जिंदगी का फलसफा कैसे सुनाऊ तुम्हे
शब्द नहीं मिलते और जुबां भी नहीं खुलती 
आँखे नम है और मन भी खामोस
दर्द है पर आंसू नहीं निकलते
दिल तन्हा  है और उदास भी
न कोई गीत है और न कोई सरगम
रंग भी सूखे है और रोशनी का भी पता नहीं
न कोई राह  और न ही कोई मंजिल
न कोई दोस्त है और न कोई सम्बन्धी
बस टूटे हए अरमानो के साथ एक अधमरा सा शरीर
साँस है भी तो मगर जीने की इच्छा नहीं !
जिंदगी का फलसफा कैसे सुनाऊ तुम्हे ...............................
जिंदगी का फलसफा कैसे सुनाऊ तुम्हे ..............................

के. एम्.भाई
ग्रामीण महिला और अधूरे सपने
एक अदद जहाँ घूमने की आजादी मिल जाये अगर
सपनो की दुनिया बसाने की एक राह मिल जाये अगर
अपने न भी हो तो कम से कम अपनों का साया मिल जाये अगर
रिस्तो का परिवार न सही बस जिंदिगी जीने का एक बहाना मिल जाये अगर
भूखे पेट को भोजन न सही कम से कम अन्न का एक दाना मिल जाये अगर
चार दिवारी का आशियाना न हो बस रहने का एक ठिकाना मिल जाये अगर
रेशमी कपड़ो का ताना बना न सही कम से कम तन ढ़कने को एक टुकड़ा कपड़ा मिल जाये अगर
सोने चाँदी के आभूषण न हो बस एक चुटकी सिन्दूर का सहारा मिल जाये अगर
दर्द से करहाती देह को दवा न सही कम से कम हाल पूछने वाला कोई मिल जाये अगर
मान सम्मान की माला न सही बस स्वाभिमान को जगाने वाला कोई मिल जाये अगर
सुख सौन्दर्य न सही कम से कम बहते आसुओ को पोछने वाला कोई मिल जाये अगर
एक अदद जहाँ घूमने की आजादी मिल जाये अगर ............................
सपनो की दुनिया बसाने की एक रह मिल जाये अगर ...........................

के.एम्. भाई
cn.- 8756011826
लोकतंत्र मर गया है ?

आज फिर सजा है जिला कार्यालय
फरियादी है कागजो का ढेर है
नीली पीली बत्ती वाली गाडियों का आवागमन है
खाकी वर्दी वाले भी है और सफेदपोसो की भी भीड़ है 
जमीन भी वही है और धूप भी घनी है पर मौसम का मिजाज कुछ अजीब है
पेड़ो की डालियों पर आज कोई शोर नहीं है पर फिजाओ में कुछ अजीब सी आवाज गूँज रही है
ये कैसी चीखे है बचाओ बचाओ की पर किसी को सुनाई क्यों नहीं देती
हवा में कुछ अजीब सी महक है जलने की पर आसमान तो साफ़ है
अरे ये क्या जमीन पर माँ- बेटी जिन्दा जल रही है
अरे इन्हें कोई बचाता क्यों नहीं कोई आग बुक्षाता क्यों नहीं
अरे ये भीड़ शांत क्यों है अरे ये इंसानी दिल पत्थर क्यों बना हुआ है
अरे ये खाकी वर्दी वाले आंगे क्यों नहीं बढ्ते अरे ये कोट धारी भी मूक खड़े है
ऐ हवा तू भी आज शांत है और ये बादल भी आज नहीं बरस रहे
अरे ये हजारो की भीड़ वाला कचहरी परिसर आज सूना सूना सा क्यों लग रहा है
अरे कोई वकील, कोई मुंशी, कोई पेशकार, राहगीर कोई भी नहीं जो इन जलती महिलाओ को बचाए
अरे ये डीएम साहब कहाँ गए उन्हें इन महिलाओ की चीख पुकार क्यों नहीं सुनाई देती
अरे क्या सभी की संवेदनाये मर गयी है या फिर दिल पत्थर बन गए है
लगता है इंसानियत मर गयी है नहीं - नहीं
इस देश का लोकतंत्र मर गया है .........................................
इस देश का लोकतंत्र मर गया है .........................................

(यह कविता 11 ओक्टूबर2012 को कानपूर नगर के डीएम कार्यालय के सामने दो महिलाओ ( माँ- बेटी ) द्वारा शासन प्रशासन द्वरा उनकी शिकायत पर कोई सुनवाई न किये जाने की वजह से अपने ऊपर मिटटी का तेल डालकर आग लगा लेने की घटना पर आधारित है ।)
के एम् भाई
कानपुर
cn - 8756011826
ये कैसा तंत्र है

जहाँ जनता रोती है और लोकतंत्र हँसता है
न्यायलय भी कैसा अँधा है जो सिर्फ दलीले सुन सकता है और तारीखे दे सकता है,
पर उससे न्याय की उम्मीद करना बईमानी है।
पुलिस प्रशासन से लाख मिन्नतें मांग लो पर उनका जमीर नहीं जागता,
मुर्दा भी पड़े-पड़े सड़ जाये वो हाथ भी नहीं लगायेंगे।
राजा (मुख्यमंत्री) के दरबार में आपको पोटली भर आश्वासन तो मिल जायेगा,
पर उस पर कार्यवाही धेला भर भी नहीं होगी।
महामहिम (राष्टपति) का दरबार सबके लिए नहीं खुलता बस चिठ्ठी भेजिए और अगली सदी आने का इंतज़ार करिए,
पता नहीं जब तक नम्बर आयेगा तब आदमी बचेगा या नहीं।
मंत्री - नेता, दलाली और कमीसन खोरी के बगैर अपनी दुम तक नहीं हिलाते,
फ़रियाद सुनना तो दूर की कोड़ी है।
क्यों इसे लोकतंत्र कहते है ?
क्यों नहीं इसे मरा हुआ तन्त्र कहते हैं?
मरा हुआ तंत्र.......................
मरा हुआ तंत्र ..........................

के एम् भाई
cn. - 8756011826
चल चला चल राही चल
आतंकवाद की पनघट बहुत कठिन है
न जिंदगी का पता है और न मौत का
आँसुओ को भी पानी समक्षकर पीना पड़ता है
बेगानों सा जीवन बिताना पड़ता है भाई
चल चला चल भाई चल
आतंकवाद की पनघट बहुत कठिन है
अपने भी पराये जैसे लगते है
ख़ुशी में भी जिल्लत के दिन बिताने पड़ते है
सब कुछ होते हुए भी असहाय से रहते है
अब तो दिल भी खटकने लगा है भाई
चल चला चल भाई चल
कहीं दूर चला जाये भाई
आतंकवाद की पनघट बहुत कठिन है भाई
आतंकवाद की पनघट बहुत कठिन है भाई

के एम् भाई
गाँधी के भारत में राज्य बंटते हुए

गाँधी तू कहाँ गया
तेरा देश बंट गया
तेरे लोग बंट गए
जातिया बंट गयी
और अब तेरे राज्य भी बंट रहे है ......................
गाँधी तू कहाँ गया
तेरा भारत टूट रहा है
नदिया बंट गयी
बंट गयी फसले
और अब तेरे जिले भी बंट रहे है.....................
गाँधी तू कहाँ गया
तेरा देश मिट रहा है
मिट गयी संक्षी विरासत
मिट गयी संक्षी संस्कृति
और अब तेरे सांक्षे रिश्ते भी मिट रहे  है .........................

के. एम्. भाई
हमरे गाँव में बिजली न आई 

कैसा विकास और कैसी आज़ादी
आज़ादी के 65 वर्षो के बाद भी
हमरे गाँव में बिजली न आई
दिवाली की जगमग है चारो ओर
पर हमरे गाँव में अँधियारा है चहुँ ओर
भाजपा गयी कांग्रेश आई बसपा गयी सपा आई
पर हमरे गाँव में बिजली न आई
केबिनेट बदला, मंत्री बदले, बदला पूरा मंत्रिमंडल
पर न बदला हमरे गाँव का मुखमंडल
नए शासनादेश आये, नयी नयी विकास योजनाये आई
पर हमरे गाँव में बिजली की कोई योजना न आई
सुना है उ प्र के कुछ जिलो में 24 घंटे बिजली आती है
पर हमरे गाँव में तो एक सेकेण्ड के लिए भी बिजली नहीं आती है
हमरे गाँव से 3 किमी की दूरी पर आई आई टी कानपूर है कहते है जहाँ कभी अन्धेरा नहीं होता
पर हमरे गाँव का अन्धेरा कभी समाप्त नहीं होता
ये कैसा न्याय और कैसी समानता है
जहाँ एक तरफ शहर रोशनी से नहाये हुए है
तो वही हमरा गाँव रोशनी की एक किरण के लिए तरस रहा है
शहरो की सडको गली मुहल्लों यहाँ तक मैदानों में बिजली बेकार हो रही है
पर हमरे गाँव की गलियां माँ बिजली का नमो निशान नहीं
1947 में देश को अंग्रेजो के चंगुल से आज़ादी मिली पूरा देश खुश हुआ
लड्डू बटे फुल्जरियाँ फूटी रंग गुलाला उड़ा
हम भी खुश और हमरा गाँव भी खुश
सत्ता बदली शासन बदला अपना देश अपना प्रधानमंत्री
नयी नयी योजनाये नयी नयी नीतिया
पर हमरे गाँव के लिए न कोई विकास नीति और न कोई योजना
सन 1971 में राजीव गाँधी ग्रामीण विधुतीकरण योजना ने खूब नाम कमाया
पर 30 वर्ष बाद भी हमरे गाँव का विधुतीकरण न हो पाया
फिर आई डा आंबेडकर ग्राम सम्पूर्ण विधुतीकरण योजनां की बारी
पर हमरे गाँव में बिजली फिर भी न आई
ग्लोबल इंडिया और इंडिया सयिनिंग ने पुरे देश को चमकाया
पर हमरे गाँव में बिजली का एक खम्बा भी न गड़ पाया 
एक बार फिर से लोहिया ग्राम समग्र विकास योजना ने सपना दिखाया
पर हमरे गाँव का नंबर फिर भी न आया
2012 जाने वाला है पर पता नहीं हमरे गाँव का नंबर कब आने वाला है
कभी फुर्सत मिले तो एक बार हमरे गाँव का भी चक्कर लगाना
तो पता चलेगा दिए की रोशनी में कैसे सपने पलते है और दिए बुझने के साथ ही बुझ जाते है
किस तरह अँधेरे में जिन्दगिया पल रही है
किस तरह अँधेरा हमरे गाँव में अपना घर बनाकर बैठा है
न कोई रोशनी है न कोई उम्मीद और न ही कोई विकास
बस सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा है .................................
बस सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा है ...........................
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के एम् भाई