रविवार, 12 मई 2013

वो व्यक्ति

जिसका चेहरा भावहीन था पर न जाने क्यों आंखे किस तलाश में थी
जिसका तन तो ढ़का था पर न जाने क्यों कपड़े फटे थे
हाथ तो खाली थे पर न जाने क्यों पीठ कूड़े के बोझ से दबी थी
उसके पैरो में न जाने क्यों तेजी थी
शायद उसे कूड़े का ओलम्पिक पाना था
न जाने उसके दिमाग में कौन सा गुड़ा भाग चल रहा था
शायद उसे कूड़े बिनने का इम्तिहान पास करना था
न जाने क्यों समाज के लिए वो घ्रणित और अपवित्र था
शायद इसलिए क्योकि उसका काम कूड़ा बीनने का था 
न जाने क्यों उसे कूड़े के ढ़ेर से इतना अपनापन महसूस होता है
शायद इसलिए क्योकि उसका परिवार कूड़े के सहारे पलता है
न जाने क्यों उसका काम सम्मान और पुरस्कार नहीं पाता
शायद इसलिए क्योकि उसका काम कूड़ा और गन्दगी बटोरना है
न जाने क्यों उसे सून-सान राहो और अँधेरी गलियों से डर नहीं लगता
शायद इसलिए क्योकि उसे अपने बच्चो की भूख से डर लगता है
हमारे देश के नेता और प्रतिनिधि तो ऐसो आराम का जीवन जीते है
पर न जाने क्यों वो व्यक्ति अभावो और कष्टों के बीच जीवन बिताता है
क्योकि उसका काम कूड़ा बिनने का है ......................
क्योकि उसका काम कूड़ा बिनने का है .......................

के एम् भाई

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