मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

ये कैसा तंत्र है

जहाँ जनता रोती है और लोकतंत्र हँसता है
न्यायलय भी कैसा अँधा है जो सिर्फ दलीले सुन सकता है और तारीखे दे सकता है,
पर उससे न्याय की उम्मीद करना बईमानी है।
पुलिस प्रशासन से लाख मिन्नतें मांग लो पर उनका जमीर नहीं जागता,
मुर्दा भी पड़े-पड़े सड़ जाये वो हाथ भी नहीं लगायेंगे।
राजा (मुख्यमंत्री) के दरबार में आपको पोटली भर आश्वासन तो मिल जायेगा,
पर उस पर कार्यवाही धेला भर भी नहीं होगी।
महामहिम (राष्टपति) का दरबार सबके लिए नहीं खुलता बस चिठ्ठी भेजिए और अगली सदी आने का इंतज़ार करिए,
पता नहीं जब तक नम्बर आयेगा तब आदमी बचेगा या नहीं।
मंत्री - नेता, दलाली और कमीसन खोरी के बगैर अपनी दुम तक नहीं हिलाते,
फ़रियाद सुनना तो दूर की कोड़ी है।
क्यों इसे लोकतंत्र कहते है ?
क्यों नहीं इसे मरा हुआ तन्त्र कहते हैं?
मरा हुआ तंत्र.......................
मरा हुआ तंत्र ..........................

के एम् भाई
cn. - 8756011826

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