मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

लोकतंत्र मर गया है ?

आज फिर सजा है जिला कार्यालय
फरियादी है कागजो का ढेर है
नीली पीली बत्ती वाली गाडियों का आवागमन है
खाकी वर्दी वाले भी है और सफेदपोसो की भी भीड़ है 
जमीन भी वही है और धूप भी घनी है पर मौसम का मिजाज कुछ अजीब है
पेड़ो की डालियों पर आज कोई शोर नहीं है पर फिजाओ में कुछ अजीब सी आवाज गूँज रही है
ये कैसी चीखे है बचाओ बचाओ की पर किसी को सुनाई क्यों नहीं देती
हवा में कुछ अजीब सी महक है जलने की पर आसमान तो साफ़ है
अरे ये क्या जमीन पर माँ- बेटी जिन्दा जल रही है
अरे इन्हें कोई बचाता क्यों नहीं कोई आग बुक्षाता क्यों नहीं
अरे ये भीड़ शांत क्यों है अरे ये इंसानी दिल पत्थर क्यों बना हुआ है
अरे ये खाकी वर्दी वाले आंगे क्यों नहीं बढ्ते अरे ये कोट धारी भी मूक खड़े है
ऐ हवा तू भी आज शांत है और ये बादल भी आज नहीं बरस रहे
अरे ये हजारो की भीड़ वाला कचहरी परिसर आज सूना सूना सा क्यों लग रहा है
अरे कोई वकील, कोई मुंशी, कोई पेशकार, राहगीर कोई भी नहीं जो इन जलती महिलाओ को बचाए
अरे ये डीएम साहब कहाँ गए उन्हें इन महिलाओ की चीख पुकार क्यों नहीं सुनाई देती
अरे क्या सभी की संवेदनाये मर गयी है या फिर दिल पत्थर बन गए है
लगता है इंसानियत मर गयी है नहीं - नहीं
इस देश का लोकतंत्र मर गया है .........................................
इस देश का लोकतंत्र मर गया है .........................................

(यह कविता 11 ओक्टूबर2012 को कानपूर नगर के डीएम कार्यालय के सामने दो महिलाओ ( माँ- बेटी ) द्वारा शासन प्रशासन द्वरा उनकी शिकायत पर कोई सुनवाई न किये जाने की वजह से अपने ऊपर मिटटी का तेल डालकर आग लगा लेने की घटना पर आधारित है ।)
के एम् भाई
कानपुर
cn - 8756011826

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